नर्मदायै नमः प्रातः नर्मदायै नमो निशी |
नमस्ते नर्मदे देवी त्राहिमाम भव सागरात् ||
माँ नर्मदा को हम प्रातः,सायं नमस्कार करते हैं| हम सर्वदा नर्मदा को नमन करते हैं| हे देवी हमें भवसागर से पार लगाना ।
भवानी शंकर के देह से प्रकट माँ नर्मदा का उद्गम मध्यप्रदेश के पूर्वी कोने में छत्तीसगढ़ की सीमा पर अनूपपुर जिले की पुष्पराजगढ तहसील के अंतर्गत अमरकंटक के पर्वत पर होता है|नेमावर नगर में इसका नाभि स्थल है। फिर ओंकारेश्वर होते हुए ये नदी गुजरात में प्रवेश करके भरूच के पास रत्न सागर (खम्भात की ) में इसका विलय हो जाता है। अपनी इस यात्रा में माँ नर्मदा कुल १३१२ कि.मी. की दूरी में व्याप्त है | यह एकमात्र ऐसी महानदी है जो अन्य महानदियों की अपेक्षा विपरीत दिशा में बहती है। अर्थात पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है|
पुराणों में माँ नर्मदा का अनन्य महत्व बताया गया है |
त्रिभि: सारस्वतं पुण्यं साप्ताहेन तु यामुनम् |
सध्य: पुनातु गांगेयं दर्शनादेव नर्मदा ||
अर्थात :- अर्थात सरस्वतीजी से पुण्य लाभ प्राप्त करने के लिये तीन बार और यमुना जी से पुण्यलाभ प्राप्त करने के लिये सात बार इन महानदियों में स्नान करना पडता है| गंगा जी से पुण्य लाभ प्राप्त करने के लिये एक बार तो भी डुबकी लगाना पडती है, परंतु माँ नर्मदा दर्शन मात्र से सभी पातकों का हरण कर देती है|
गंगा कनखले पुण्या कुरुक्षेत्रे सरस्वती |
ग्राम्ये वा यदिवारण्ये नर्मदा सर्वत्र पुण्यदा||
अर्थात गंगा जी कनखल (हरिद्वार) में पुण्यदायक है तो सरस्वती जी कुरुक्षेत्र में ही अपना पुण्य लाभ देती है, जबकी माँ नर्मदा अपने तट के प्रत्येक ग्राम, नगर, वन, उपवन, निर्जन प्रदेश अर्थात सर्वत्र पुण्यदायक है|
नदियों में एकमात्र माँ नर्मदा ही वह सरिता है, जिस पर महार्षि वेदव्यास ने पुराण की रचना करी| माँ नर्मदा के संपूर्ण वैभव का सुंदर वर्णन ३५२ अध्यायों में १४६५९ श्लोकों के माध्यम से " नर्मदा पुराण" नामक महाग्रंथ में किया गया है| पुराणों में जितना माँ नर्मदा के विषय मे लिखा गया है उतना और किसी नदी पर नहीं| स्कंदपुराण का #रेवाखंड " तो पूरा ही माँ नर्मदा को समर्पित किया गया है| इसके अतिरिक्त पद्मपुराण, मत्स्य पुराण, वायु पुराण आदी में भी माँ नर्मदा का महत्वपूर्ण उल्लेख मिलता है, श्रीमद्भागवत में भी अनेक स्थानों पर माँ नर्मदा का उल्लेख प्राप्त होता है| इसके अतिरिक्त वसिष्ठ संहिता, रामाश्वमेध, दलपतनामा, शंकर दिग्विजय आदी अनेक पुरातन ग्रंथ माँ नर्मदा को अर्पित है|
माँ नर्मदा का तट मार्कंडेय,कपिल,भृगु,जमदग्नि, अत्रि, वसिष्ट, पिप्पलाद, कर्दम, मतंग, वाल्मीकी आदि असंख्य ऋषियों की तपोभूमी रहा है |
युगं कलिं घोरमिमं य इच्छेद् द्रष्टुं कदाचिन्न पुनर्द्विजेन्द्रा: |
स नर्मदातीरमुपेत्य सर्वं सम्पूजयेत्सर्वविमुक्त संङ्गः||
जी पुरुषश्रेष्ट भक्त इस घोर कलयुग को पुनः नहीं देखना चाहते , वह सभी आसक्ति छोडकर नर्मदा तट पर पहुँच कर शिव का पूजन करें|
ये नर्मदातीरमनुप्रपन्ना अर्थ्यर्चयित्वा शिवमव्याख्यायाम|
नारायणं वा मनसा सुपूता पिबन्ति मातुर्न पुनः स्तनं ते ||
जो भक्त नर्मदा तट पर निवास करते हुए अविनाशी शंकर और नारायण की आराधना करते है, वह पुनः किसी माता का स्तन नहीं पीते|
इसीलिये तप साधना के लिये नर्मदा तट सर्वश्रेष्ठ माना गया है:-
नर्मदा परिक्रमा को माँ नर्मदा की सर्वश्रेष्ट साधना माना गया है|
माँ नर्मदा के तट पर असंख्य तीर्थ क्षेत्र स्थित है| इन तीर्थों के क्रमानुसार दर्शन को परिक्रमा कहा जाता है|
माँ नर्मदा की जल धारा को सदा अपने दाहिने ओर रखकर माँ नर्मदा का संपूर्ण चक्कर लगाना ही नर्मदा परिक्रमा कहलाता है|
संपूर्ण नर्मदा परिक्रमा की कुल दूरी पैदल ३२०० कि.मी. तथा वाहन द्वारा ३५०० कि.मी. के लगभग होती है|
संपूर्ण नियमों का पालन करते हुए पैदल परिक्रमा करने पर ३ वर्ष ३ महिने और १३ दिवस का समय लगता है| अनेक भक्त छः महिने में ही पैदल परिक्रमा पूर्ण कर लेते है| शारिरिक रूप से अस्वस्थ, वृद्ध और व्यस्त व्यक्ति वाहन द्वारा परिक्रमा के विकल्प का चयन करते हैं|
कैवल्य धाम आश्रम द्वारा प्रतिवर्ष वाहन द्वारा परिकमा का आयोजन किया जाता है जिसका विवरण जानने के लिये इस वेब साइट का पूर्ण अवलोकन करे|
|| मात् श्री नर्मदे हर ||